मां, मुझे माफ़ करना. हर साल की तरह, इस दफा न आ पाऊंगा हर साल की तरह, इस दफा न आ पाऊंगा. जानती हो मां तुझसे मिलने को बेताब हूं फिर भी मैं हताष हूं न आ पाऊंगा मैं मां जानती हो मां, इन छुट्टी के दिनों में मैं, इन छुट्टी के दिनों में मैं, तुम्हे समझने लगा हूं. समझने लगा हूं, तुम्हारी दुनिया में कोई और क्यों न था बस मैं, पापा, और दीदी. यूं तो ये दिन घूमने फिरने वाली छुट्टी के दिनों जैसी नहीं मगर ये छुट्टी बिलकुल तुम्हारी ज़िन्दगी जैसी है. मां, सोचता था की क्या तुम नही थकती थकती हो तो कुछ कहती क्यों नही? आज समझता हूं, घर के काम ही तुम्हारे हवाले थे माफ़ करना मां कभी घर रहकर तुम्हारा हाथ न बटा पाया मगर इन छुट्टियों में तुझ सा घर संभालना सीख गया माफ़ करना इस दफा मैं नही आ पाया डर है मां इन छुट्टियों में तेरी याद आती है मां खाना बनाने के बहाने से तुझे देखता हूं दूर रहकर भी तुझे थोड़ा सता लेता हूं मानता हूं तुझे भी मेरी फिक्र होती होगी मगर मां तुम अपना ख्याल ज्यादा रखना हो सका तो सब ठीक होने के बाद मैं आऊंगा तुझसे मिलने औ